जीवन एक पहेली है।
जिसे कोई जान ना पाया है।
जीवन और मरण के खेल को,
कोई समझ ना पाया है।
मेहमान बनके कुछ दिन के लिये,
हम सभी यहाँ पर आते हैं।
जब भी ये पराया करदे,
कहीं अनंत में चले जाते हैं।
जब एक दिन जाना ही है तो,
क्यों फिर हम ढोंग रचाते हैं।
चार दिन की ज़िंदगी का दिया,
हम इस तरह रौशन करें।
दे ना इसमें दर्द किसी को,
किसी उम्मीद का दिया रौशन करें।
By Suhani Singh
जिसे कोई जान ना पाया है।
जीवन और मरण के खेल को,
कोई समझ ना पाया है।
मेहमान बनके कुछ दिन के लिये,
हम सभी यहाँ पर आते हैं।
जब भी ये पराया करदे,
कहीं अनंत में चले जाते हैं।
जब एक दिन जाना ही है तो,
क्यों फिर हम ढोंग रचाते हैं।
चार दिन की ज़िंदगी का दिया,
हम इस तरह रौशन करें।
दे ना इसमें दर्द किसी को,
किसी उम्मीद का दिया रौशन करें।
By Suhani Singh
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