Suhani Singh

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पतझड़ गया, बसन्त है आया। Suhani Singh

पतझड़ गया,वसंत है आया।
आये दिन बहार के।।
रुपहले इन रंगों में रंगकर।
हो गए हम गुलज़ार से।।
सिलसिले फिर शुरू हो रहे।
प्यार के खुमार के।।
खत्म हो रहे सफर अब।
ग़म की अँधेरी रात के।।
By Suhani Singh


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